ग़ाज़ीपुर में कौन भारी, अफ़ज़ाल अंसारी या बीजेपी के पारसनाथ राय - BBC News हिंदी (2024)

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  • Author, प्रवीण कुमार
  • पदनाम, गाज़ीपुर से बीबीसी हिंदी के लिए

गाज़ीपुर में अंतिम चरण में एक जून को मतदान होना है. भाजपा से पारसनाथ राय जो जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के क़रीबी बताए जाते हैं, सपा से वर्तमान सांसद अफ़ज़ाल अंसारी और बसपा से उमेश सिंह मैदान में हैं.

चुनाव में पार्टियों ने प्रचार के लिए अपना दम-खम तो लगाया ही है लेकिन इन सबके बीच चर्चा मुख़्तार अंसारी की भी हो रही है, जिनकी 28 मार्च 2024 को जेल में रहते हुए हुई मौत को लेकर कई सवाल उठे थे.

सपा, भाजपा और बसपा के प्रत्याशी चुनाव प्रचार में चुनावी संबोधन या सामान्य बातचीत के दौरान मुख़्तार अंसारी की चर्चा करना नही भूल रहे हैं.

भाजपा प्रत्याशी पारसनाथ राय जहाँ मुख़्तार अंसारी की मृत्यु को एक आततायी का अंत बताते हैं, जिससे गाज़ीपुर और आसपास का क्षेत्र मुक्त हुआ, तो वहीं अफ़जाल अंसारी सरकारी ज़ुल्म का आरोप लगाते हए कहते हैं कि लाखों लोगों का मसीहा चला गया.

अंसारी परिवार के घर को लोग फाटक के नाम से जानते है. स्थानीय लोगों की बातों का भरोसा करें तो लोग दावा करते हैं कि एक बार जो किसी मदद के लिये फाटक पहुंच गया तो उसकी मदद होनी है.

वर्तमान समय में योगी सरकार में फाटक की हनक को लेकर स्थानीय लोग कहते हैं, “पहले वाली बात अब नहीं रही.”

फाटक के पास ही बिजली मैकेनिक के तौर पर काम करने वाले क़य्यूम ख़ान कहते हैं, “मुख़्तार भाई की बात ही अलग थी. बात उन तक पहुँचती थी और मदद हो जाती थी. मेरा ही एक ज़मीन का मामला था, कुछ लोग क़ब्ज़ा कर रहे थे, जिसे उन्होने मुझे वापस दिलवाया.”

जब मुख़्तार अंसारी 2005 से जेल में थे तो मदद कैसे करते थे, इसके जवाब में क़य्यूम ख़ान कहते हैं, “जिसको कोई समस्या होती थी वह जेल में जाकर मिलकर अपनी बात बताता या जेल जाकर मुलाक़ात करना संभव नही होता था तो उनके लोगों को बता देने से ही काम हो जाता था. उनके जाने से लोगों में मायूसी है. हर जाति धर्म के लोगों की मदद करते थे. यही कारण है कि उनके मिट्टी (अंतिम यात्रा) में लाखों लोग शामिल हुए थे.”

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मुख़्तार अंसारी के लिए क्या है लोगों की राय

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पुराने बाज़ार की तरफ़ जाने पर 70 वर्षीय एक बुज़ुर्ग महिला मिलीं, बहुत पूछने पर भी अपना नाम नही बताया.

लेकिन कहा, “तीनों भाइयों में मुख़्तार बड़े नेता थे, आज मोहम्मदाबाद की चर्चा उनके ही कारण होती है. वो सालों से जेल में थे. अपराधी थे या नहीं, ये सब हम नहीं जानते लेकिन उनकी मिट्टी में इतनी भीड़ हुई कि लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे. कुछ तो बात होगी कि इतने लोग आए थे.”

वहीं बाज़ार में मौजूद एक 30 साल के युवक ने बताया, “ये बात सही है कि अंसारी भाई लोगों की मदद करते थे लेकिन उसमें मुसलमान वर्ग के लोगों की प्राथमिकता और संख्या ज़्यादा थी. जब तक इन लोगों का प्रभाव है किसी और का उभार यहां से नहीं हो सकता.”

सुबह के समय चुनाव प्रचार के लिए निकलने से पहले सपा प्रत्याशी अफ़जाल अंसारी से अपने पूर्वजों का इतिहास बताते हुए अपनी बात शुरू करते हैं, “हमारे दादा मुख़्तार अहमद अंसारी 1927 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. जामिया मिलिया इस्लामिया के फाउंडर मेंबर रहे. हमारे परिवार के कई लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया."

"हमारा देश और समाज की सेवा का इतिहास रहा है. उसी को हम जनता की सेवा के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं. मैं गाज़ीपुर का जाना पहचाना चेहरा हूँ. 11वीं बार चुनाव लड़ रहा हूँ. पिछली बार सपा-बसपा गठबंधन में बसपा से चुनाव लड़ा उस समय जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा जी जिनके पास कई भारी भरकम मंत्रालय थे, उनको हराया.”

मुख़्तार अंसारी के निधन के बाद सहानुभूति के कारण मिलने वाले वोट की बात पर अफ़जाल ने कहा, “आज मुख़्तार अंसारी नहीं हैं. 18 साल से अधिक समय से वो जेल में थे, जेल से ही कई चुनाव जीते. ये उनकी लोकप्रियता थी. मुझे सहानुभूति का नहीं, भाजपा की उपलब्धि का वोट मिलेगा. योगी तो कह रहे हैं कि मरना तो था ही, ऐसे लोग या तो मिट्टी में मिल जाएंगे. अब फ़ैसला तो चार जून को पता चलेगा कि किसको किसका वोट मिला. अगर जनता मुख्यमंत्री योगी के समर्थन में होगी तो मुझे सहानुभूति का वोट कहां मिलेगा, मेरी तो ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी."

अंसारी कहते हैं, "अब मामला उनका हमारा नहीं है. अब मामला जनता की अदालत मे है. साल 2022 विधानसभा चुनाव में मनोज सिन्हा जी दरवाज़े –दरवाज़े घूमे थे फिर भी गाज़ीपुर की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा को हार मिली थी.”

अफ़जाल अंसारी अपने ऊपर दर्ज मुक़दमों के बारे में बताते हैं, “कृष्णानंद राय हत्या के मामले में एक अपील में में बरी हो चुका हूं. मेरे ख़िलाफ़ एक धरना प्रदर्शन का मामला है और मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का चुनाव में देर तक बिना अनुमति के चुनावी सभा के दो मामले हैं.”

मुख़्तार अंसारी पर दर्ज कई संगीन मामलों के सवाल पर अफ़जाल अंसारी भड़कते हुए कहते हैं, “उनकी क़ब्र के पास आपको भिजवा देते हैं, वहीं सवाल पूछ लीजिए कि इतनी लंबी आपकी क्राइम हिस्ट्री है उसका जवाब दे दो. एक आदमी मर के मिट्टी में दफ़न हो गया फिर भी उसके बारे में सवाल जवाब हो रहा है इसका मतलब वह अमर हो गया है.”

अफ़ज़ाल अंसारी की बेटी भी चुनावी मैदान में

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निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अफ़ज़ाल अंसारी की बेटी नुसरत ने भी नामांकन किया है. माना जा रहा है कि हाई कोर्ट में चल रहे मामले में अगर फ़ैसला अफ़ज़ाल के पक्ष में नहीं गया और वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गये तो ऐसे में बेटी नुसरत मैदान में बनी रहेंगी.

अफ़ज़ाल अंसारी ने गाज़ीपुर की एक अदालत द्वारा गैंगस्टर क़ानून के एक मामले में दोषसिद्धि एवं चार साल की सज़ा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी है.

भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में गैंगस्टर क़ानून के तहत अफ़ज़ाल को चार साल की सज़ा सुनाई गयी थी, जिससे उनकी संसद सदस्यता चली गई थी.

दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के गैंगस्टर अधिनियम के एक मामले में सांसद अफ़ज़ाल अंसारी की दोषसिद्धि को सशर्त निलंबित कर दिया था, सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद फिर से उनकी संसद सदस्यता बहाल हो गई थी.

हालांकि मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में है. एक जून को मतदान से पहले अगर अदालत निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराती है तो अफ़ज़ाल अंसारी चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य हो जाएंगे.

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भाजपा प्रत्याशी पारसनाथ राय का पहला चुनाव

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अफ़ज़ाल को सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार पारसनाथ राय से मिल रही है, जो अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे हैं.

वह मनोज सिन्हा के क़रीबी माने जाते हैं और शिक्षा व्यवसायी हैं.

अपनी चुनावी तैयारियों पर बात करते हुए कहते हैं, “भले चुनाव मैं पहली बार लड़ रहा हूँ लेकिन राजनीति में मुझे सक्रिय रहते हुए 50 साल हो गए हैं. यहाँ भारतीय जनता पार्टी के हर चुनाव के केंद्र में मैं रहा हूं इसलिए यह चुनाव मेरे लिए नया नहीं है.”

गाज़ीपुर के पूर्व सांसद मनोज सिन्हा से मिलने वाले फ़ायदे के बारे में बताते हुए पारसनाथ राय कहते हैं, “उनके द्वारा ज़िले में किए विकास के कार्यों को आज भी जनता याद करती है, उसका पूरा फ़ायदा इस चुनाव में मुझे मिल रहा है. 2019 में मनोज सिन्हा जी चुनाव हार गए. उनकी हार का लोगों के मन मे इतना कसक है कि अगर मैं चुनाव जीतूंगा तो केवल उस कसक के कारण जीतूंगा.”

सपा प्रत्याशी पर बात करते हुए वह कहते हैं, “अफ़ज़ाल अंसारी पांच बार विधायक और दो बार सांसद रहे, इतने दिन इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया लेकिन एक भी कार्यकर्ता नहीं बना पाये, उनके लिए केवल उनका अपना परिवार महत्वपूर्ण है, उसके आगे वो कुछ नहीं सोचते."

पारसनाथ राय मुख़्तार अंसारी का ज़िक्र करते हैं, “जिस दिन मुख़्तार अंसारी गए उस दिन इस ज़िले ने राहत की सांस ली, कम से कम एक पाप हटा इस धरती से. इस ज़िले में मुख़्तार अंसारी का आतंक था. गाज़ीपुर ज़िले की चर्चा में मुख़्तार और अफ़जाल का ज़िक्र होता है, यह सुनकर बहुत बुरा लगता है.”

जातीय समीकरण को लेकर ये सीट बीजेपी के लिए मुश्किल भरी हो सकती है.

इसी को समझाते हुये पारसनाथ राय कहते हैं, “ सपा, बसपा और उनके (अफ़ज़ाल) वर्ग के वोटों की बात करें तो यह सब मिलकर 50 प्रतिशत से अधिक है, ऐसे में तो कोई चुनाव जीत सकता है. लेकिन वर्तमान में परिस्थितियां अलग हैं, सपा और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ रही है, सुभासपा के लोगों का समर्थन हमें मिल रहा है. उनका पता ही नहीं है, वो चुनाव लड़ेंगे की उनकी बेटी चुनाव लड़ेंगी, दोनों ने नामांकन कर रखा है. मुझे तो समझ ही नही आ रहा है कि मेरी लड़ाई किससे है.”

गाज़ीपुर से बसपा ने पेशे से अधिवक्ता उमेश सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया हुआ है. माना जा रहा है कि बीजेपी की दावेदारी तभी मज़बूत होगी जब बसपा उम्मीदवार मज़बूती से चुनाव लड़े.

उमेश सिंह कहते हैं, “यहां कोई मुक़ाबला नहीं है, बाक़ी दोनों प्रत्याशियों की समाज में छवि निगेटिव है. यहां दो घराने है जो धार्मिक उन्माद फैला कर बारी-बारी से चुनाव जीतते रहे हैं. जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा जी अपने बेटे को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन बात नहीं बनी तो अपने क़रीबी पारसनाथ राय को चुनाव लड़ा रहे हैं. दूसरे माफ़िया हैं, सजायाफ्ता हैं."

चुनाव के बारे में लोगो की क्या राय है ?

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गाज़ीपुर लोकसभा के जंगीपुर विधानसभा के सुल्तानपुर गांव में मिले 55 वर्षीय बालचंद्र कहते हैं, “लड़ाई तो सपा भाजपा के बीच ही है, भाजपा का पलड़ा मज़बूत दिखाई दे रहा है. मुख़्तार भले ही जेल में रहे लेकिन वहीं से ग़रीब लोगों का मदद करते थे. अफ़जाल अंसारी पांच साल सांसद रहे लेकिन क्षेत्र में कभी दिखाई नहीं दिए.”

बालचंद्र के साथ ही बैठे 70 वर्षीय तूफानी राम उनसे अलग राय रखते हैं, “अफ़जाल अंसारी को भी वोट मिलेगा. हां अगर भाजपा से मनोज सिन्हा चुनाव लड़ रहे होते तो पक्का चुनाव वही जीतते क्योंकि गाज़ीपुर के लिये जो कुछ भी हुआ है, वही किए हैं. पारसनाथ राय भले ही उनके नाम पर वोट मांग रहे हैं लेकिन पारसनाथ राय मनोज सिन्हा नहीं हैं. मनोज सिन्हा के लड़के को भी टिकट मिला होता तो हम सब लोग भाजपा को वोट देते.”

गाज़ीपुर सदर विधानसभा के संदीप अग्रहरि कहते हैं, “यहां लड़ाई त्रिकोणीय है. पिछली बार सपा-बसपा के बीच गठबंधन के कारण बसपा से अफ़जाल अंसारी चुनाव जीत गये थे लेकिन इस बार जीतना मुश्किल है. उन्हें मुस्लिम समाज का वोट मिल जायेगा, लेकिन हिंदू वर्ग के लोग उनको वोट करेंगे यह कहना मुश्किल है.”

क्या कहते हैं राजनीति के जानकार

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गाज़ीपुर के वरिष्ठ पत्रकार अनिल उपाध्याय बताते हैं, “गाज़ीपुर का चुनाव पूरी तरह से जाति पर आधारित चुनाव है. लड़ाई तो सपा और भाजपा के बीच है लेकिन जातिगत समीकरण सपा प्रत्याशी अफ़जाल अंसारी के पक्ष में है. जैसे जैसे चुनाव निकट आ रहा है पारसनाथ राय के पक्ष में भी माहौल बन रहा है.”

मुख़्तार अंसारी के नहीं रहने के बाद भी चुनाव पर असर की बात करते हुए अनिल उपाध्याय कहते हैं, “मुख़्तार अंसारी के ना होने से अफ़जाल अंसारी को इस चुनाव में नुक़सान तो हो रहा है. हालांकि अफ़जाल अंसारी का अपना अलग प्रभाव है. अफ़जाल अंसारी भले ही राजनीति में मुख़्तार अंसारी से पहले आए कई बार विधायक चुने गये लेकिन मुख़्तार के राजनीति में आने के बाद अंसारी परिवार में सबसे बड़ा की फैक्टर मुख़्तार ही थे.”

“सब मिला जुलाकर कहे तो लडाई आसान नहीं है, हां यहां ज़रूर बसपा की मज़बूती भाजपा की जीत तय कर सकती है लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है."

गाज़ीपुर लोकसभा का समीकरण

गाज़ीपुर लोकसभा में जिले की पांच विधानसभाएं, गाज़ीपुर सदर, जंगीपुर, जखनियां, सैदपुर और जमानियां हैं. 2022 के विधानसभा के चुनाव में चार सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की थी, जखनियां सीट पर सपा-सुभासपा गठबंधन में सुभासपा ने अपने नाम की थी.

हालांकि बाद में सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने सपा से गठबंधन तोड़ कर भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया था, इस लोकसभा चुनाव में सुभासपा भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. ज़िले की बाक़ी दो विधानसभा सीटों पर भी सपा-सुभासपा गठबंधन ने ही जीत दर्ज की थी.

मोहम्मदाबाद से अफ़जाल अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी के बेटे ने जीत दर्ज की थी, तो ज़हूराबाद सीट से ओमप्रकाश राजभर विधायक चुने गये थे. गाज़ीपुर जिले की यह दोनों सीटें बलिया लोकसभा के अंतर्गत आती हैं.

गाज़ीपुर लोकसभा में मनोज सिन्हा 1996, 1999 और 2014 में चुनाव जीते थे. इस बार उनके क़रीबी चुनाव मैदान में हैं. जबकि अफ़जाल 2019 से पहले 2004 में यहां से सांसद रहे.

गाज़ीपुर लोकसभा मतदाताओं की संख्या 20 लाख 74 हजार के क़रीब है, जिसमें अनुमान के मुताबिक़ यादवों की संख्या सबसे अधिक है. वहीं अनुसूचित वर्ग, मुसलमान, ठाकुर और कुशवाहा वोटरभी बड़ी तादाद में हैं.

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